
तुलना
हम क्यों आपस में एक दूसरे की तुलना करते हैं?
जबकि हम जानते हैं कि हम सभी में वो विलक्षण क्षमताएँ है जिससे हम स्वयं का भला भी कर सकते हैं एवम् जरूरतमंदो का भी।
जब भी मैं अपने आस-पास नज़र घूमाती हूं, यही देखने में आता है। कहीं ना कहीं हम स्वयं को जाने अंजाने में दूसरों से बेहतर साबित करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। यह भूल जाते हैं कि हम दूसरों की नज़र में चाहे ऊपर ना चढ़ पाएँ स्वयं की नज़रों में तो स्वयं को गिरा ही देते हैं।
इन सब के बजाए यदि हम स्वयं के लिए जीना शुरू करें, स्वयं के अस्तित्व को किस प्रकार उत्तम से उत्तम बनाना है, किस प्रकार स्वयं को विकसित करना है, यदि हम उस पर ध्यान केंद्रित करें तो पाएंगें कि हमारी दिनों दिन प्रगति होगी।
जानते हैं क्यों? क्योंकि हमने अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल स्वयं के लिए ही किया है। जिससे कहीं भी हमारी ऊर्जा का ह्रास नहीं हुआ।