Critics and praisers(आलोचक एवम् प्रशंसक)

Critics and praisers(आलोचक एवम् प्रशंसक)

अक्सर देखने में आता है, और आपने भी महसूस किया होगा हमारे जीवन में दो प्रकार के लोग होते हैं। एक प्रशंसक, जो सदैव हमारे बारे में अच्छा बोलते हैं, हमसे खुश रहते हैं, हमारे हर कार्य में हमारा पक्ष लेते हैं, अतः हमारी हर क्रिया पर हमेशा एक सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं।

दूसरे आलोचक, जो सदैव हमारी निंदा करते हैं, हमारे विपरीत खड़े रहते हैं, एवं इस बात के इंतज़ार में होते हैं, कि कब हमसे ज़रा-सी गलती भी, गलती से हो जाए, तो बस खींच लें हमारा पैर, और गिरा दें हमको ज़मीन पर।

आपको पता है, ये दोनों ही प्रकार के प्राणी हमारे जीवन में बहुत अहम “भूमिका” निभाते हैं। ये दोनों ही हमें चलना, गिरना, चोट खाना और फ़िर संभलना सिखाते हैं। अब यदि मैं दोनों में से एक को भी,…… ध्यान दीजिएगा, एक को भी अपने जीवन से निकाल दूं, तो जानते हैं क्या होगा?!?

होगा यह…… ना तो मैं गिरने का मतलब समझ पाऊंगी और ना ही संभलने का, ना ही प्रशंसक का एवं ना ही आलोचक का!

यह विषय मेरा सबसे प्रिय, सबसे ‘favourite’ विषय है। अतः इसके बारे में बात करना मुझे बेहद रोचक लगता है। अब गौर करने वाली बात यह है, कि इन दोनों में भी दो “categories” होती हैं।

पहले… प्रशंसक, जो कि दो प्रकार के होते हैं। पहला वो, जो आपकी हर बात में प्रशंसा करेगा, यह भी नहीं देखेगा कि आपने वह कार्य सही किया है या गलत, ऐसे लोगों से सावधान रहिए, वो आपकी प्रगति में कोई ऐसा बड़ा योगदान नहीं देने वाले। अतः वे चापलूस हो सकते हैं, या फ़िर हो सकता है, वे आपसे बेहद भरोसा करते हैं। अतः उन्हें लगता है कि आप जो करेंगें वो सही ही करेंगें।

दूसरे आलोचक… जो कि दो प्रकार के होते हैं। एक वे, जो आपकी हर क्रिया के विरोध में खड़े पाए जातें हैं। आप जो भी करें जो भी कहें उसमें से वे नकारात्मक पहलू कहीं से भी ढूंढ़ कर निकाल ही लेते हैं। उनकी पूरी कोशिश होती है, कि आप एक बार गिर जाएं, और ऐसे गिरें कि कभी उठने की हिम्मत ही ना कर पाएं।

वे आपकी यदा-कदा गलती से प्रशंसा कर भी दें, परंतु जैसे ही उन्हें लगेगा कि आप खुश हो रहें हैं, आत्मविश्वास में आ रहे हैं। वे आपको तुरन्त ही गिरा देंगे, ऐसी हालत के देते हैं कि आप सोचेंगे, कि ये ना तो मुझे जीने देगा ना ही मरने।

दूसरे आलोचक वे, जिनमें थोड़ी इंसानियत, थोड़ी संवेदना होती है। वे आपके विरुद्ध अवश्य होते हैं, परन्तु जब उन्हें यह लगता है कि आपकी मदद करके या आपका पक्ष लेकर उनका कुछ फ़ायदा हो सकता है, तो वे आपका साथ दे देते हैं। ये इतने ख़तरनाक नहीं होते।

पहले प्रकार के आलोचकों से सतर्क रहने की आवश्यकता हमें अधिक होती है, क्योंकि उनका दिन-रात खाना-पीना, उठना-बैठना सब आपके लिए होता है। वे सदैव आप ही के बारे में सोचते हैं कि कैसे आपको गिराएं। परन्तु…… इनमें एक रोचक विशेषता होती है, वह ये कि ये लोग आपको अपनी इतनी ऊर्जा देते हैं, जितनी आपके प्रशंसक भी आपको नहीं दे पाते।

ऐसे व्यक्तियों के कारण आप कार्य को सही तरीक़े से करना सीखते हैं। इसीलिए इनसे सावधान अवश्य रहिए, परन्तु घबराइए नहीं। क्योंकि असल में ये, वे लोग हैं, जो आपको घिस-घिस कर चमका देते हैं। आपके मस्तिष्क को बेहद ही परिपक्व, कुशाग्र एवं तेज़ बना देते हैं।

जानते हैं कैसे?!?

क्योंकि अब आप इनके समक्ष जो भी कार्य करेंगें उसे सम्पूर्ण निपुणता से करने की चेष्टा करेंगें। परन्तु हास्यास्पद स्थिति यह है, कि ये मनुष्य बेचारे यह नहीं जान पाते कि वे आपको अंजाने में अपनी इतनी ऊर्जा दे रहे हैं, जिससे आपका मार्ग प्रशस्त एवं उनका मार्ग अवरुद्ध हो रहा है।

इस संदर्भ में, मैं एक बात महसूस करती हूं, कि ईश्वर ने हम सबके भीतर एक ऐसी चीज़ छुपा रखी है, जिससे हम स्वयं का ही भला कर सकते हैं एवं स्वयं का ही बुरा। दूसरे का ना तो भला कर सकते हैं और ना ही बुरा!

अतः मुस्कुराइए जनाब आप पूर्णतया सुरक्षित हैं!!!

चुनना आपको है, कि उपर्युक्त व्यक्तियों में से आपको क्या बनना है?!?

सोच के सोचिएगा…… आपकी यात्रा मंगलमय हो।!।

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