
पर्यावरण
ईश्वर ने धरती को कितना सुन्दर बनाया । इसे सुन्दर बनाने हेतु, कितने अद्भुत रंगों से सजाया ! नीला आसमान, हरे-भरे वृक्ष, लहलहाते खेत, रंग-बिरंगे पुष्प एवं उनपर मंडराने वाले कीट-पतंगें। स्वच्छ, निर्मल एवं पवित्र जल।
कभी विचार किया है, इन सब के बिना हमारी धरती मां कितनी उदास प्रतीत होगी ? और धरती मां ही क्यों हम भी तो इस सुन्दर धरती की निराली छटा को देखकर खुशी से झूम उठते हैं ।
पर्यावरण “परि+आवरण” से मिलकर बना हुआ एक मनोहर शब्द है, जिसका अर्थ तो हम सभी जानते हैं। परन्तु,
क्या हम इस पर्यावरण के साथ न्याय कर रहे हैं?
क्या ईश्वर के इस अनूठे एवं अनुपम उपहार को हम सहेज कर रख पा रहे हैं?
क्या ये सभी उपर्युक्त प्रश्र हमारे भीतर नहीं उत्पन्न होने चाहिए ?
भले ही हम इस पर्यावरण को, इस अनुपम, अद्भुत धरती को और अधिक सुंदर ना बना पाएं, तो क्या हमें इसे उसी प्रकार सुन्दर बनाकर नहीं रखना चाहिए। जिस प्रकार यह धरती हमें ईश्वर ने उपहार स्वरूप भेंट की है ?
इन सब प्रश्नों के उत्तर हमारे ही निकट हैं। मैं सदैव कहती हूं, प्रश्न करना अधिक सरल होता है । किन्तु उनके उत्तर……
कभी कभी कुछ प्रश्नों के उत्तर हमारे पास होते हुए भी हमें निरुत्तर बना देते हैं।
मैं जानती हूं, जो प्रश्न मैंने आप से किए हैं। उनके उत्तर हम सभी के समक्ष हैं एवं इनसे सम्बंधित समस्याएं और हल भी प्रस्तुत हैं। बस देरी है तो इस दिशा में प्रयास करने की। हालांकि इस दिशा की ओर प्रयास होते भी आए हैं। परन्तु, मुझे लगता है, यह इतने काफ़ी नहीं हैं।
हमारा युग एक तकनीकी युग है, जो कि कई प्रकार से हमारे लिए सहायक भी है। परन्तु, मैं आप सभी से यही अनुरोध करना चाहूंगी कि जब हम विभिन्न तकनीकों का आविष्कार करने योग्य हैं। तो हम उसे इस प्रकार भी तो निर्मित कर सकते हैं, जिससे वह हमारी धरती मां की अलौकिक एवं दिव्य सुन्दरता का हनन ना हो।
समस्या स्पष्ट है, हल भी हमारे ही पास है।
~ विचारणीय तथ्य।
~ विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।