
नारी की आधुनिक दशा
“नारी”, “स्त्री”, “lady”, “woman” या फिर “औरत”।
आज के युग में “नारी” की “दिशा” और “दशा” को लेकर लोगों में कई प्रकार की चर्चाऐं होती रहती हैं। मैंने कभी भी इस विषय को इतनी गहनता से नहीं लिया।
हालांकि हमारे समाज में हमारी पुरातन नारियों ने सोच बदलने हेतु एवं अपना उचित स्थान एवं सम्मान पाने हेतु बहुत प्रयास किए हैं, जो की काफी हद तक सफल भी हुए हैं।
लेकिन आज भी यदा – कदा समाज की छोटी सोच से हर नारी का सामना जीवन में कभी ना कभी हो ही जाता है।
मेरा सम्पर्क जब सामाजिक लोगों से हुआ, तब मुझे वो महसूस हुआ, जो मैंने जीवन में कभी भी महसूस नहीं किया था। तब मैंने अलग अलग प्रकार से नारियों की परिस्थितियों पर विष्लेषण शुरू किया।
सिर्फ एक तरफा स्तिथि को देखकर या सुनकर हम सारा आरोप स्त्रियों पर नहीं लगा सकते। जो लोग सच में किसी नारी के जीवन का विष्लेषण करते हैं, वे कभी भी नारियों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को ग़लत नहीं बताते। अक्सर ऐसे विश्लेषणकर्ता द्वारा सुनने में आता है- जिन्होंने नारी के साथ अत्याचार किया अब वे ख़ुद भुगत रहे हैं।
हर नारी में “काली” है,
“दुर्गा” है,
“सीता” है,
“सरस्वती” है,
“पार्वती” है।
यह बात सभी जानते एवं मानते हैं, परन्तु “स्वीकारते” बहुत कम लोग हैं।
जब नारी “सीता” बनकर अपनी पवित्रता का प्रमाण देती है, और तब भी समाज उस पर कीचड़ उछालता है, तब कहीं जाकर वह “दुर्गा”, “काली”, “महाकाली” का रूप धारण करती है।
चाहे कई स्तिथियों परिस्थितियों में नारी देखने में गलत लगे, परन्तु जब भी नज़दीक से उसका विश्लेषण करेंगे 95% स्तिथियों में वे आपको राक्षसी नहीं अपितु, “महाकाली” के रूप में नज़र आएंगी।
विडम्बना यह है, कि कहीं – कहीं पर नारी तो अपना स्वरूप पहचानकर “महाकाली” बन रही है। परन्तु, उस “महाकाली”, उस “महाशक्ति” को संभालने एवं संवारने हेतु “शिव” एवं “महाशिव” का निर्माण होने की आवश्यकता है, जो स्वयं के सम्मान से पूर्व अपनी “शक्ति” के सम्मान हेतु तत्पर रहता है।
समाज का दृष्टिकोण भी हमने ही निर्धारित किया है, अथवा इसे परिवर्तित भी हम ही कर सकते हैं। जो हम कहते हैं, वैसा ही समाज कहता है, जो हम करते हैं समाज भी वैसा ही करता है। अर्थात्, समाज हम से है। परन्तु परिस्थितियां तब विकट हो जाती हैं, जब हम यह स्वीकारने लगते हैं कि “हम समाज से हैं”।
समाज के अनुसार शिव को पाने हेतू तपस्या तो पार्वती ने की थी । परन्तु यदि गहराई से देखा जाए तो इसके पीछे एक और सत्य यह है कि पार्वती को पाने हेतू कठिन तपस्या तो शिव ने की थी । पार्वती ने तो सदैव जन्म लेकर अपने जीवन में कर्म को अधिक महत्व दिया है। पार्वती ने कितने ही जन्म लिए हों परन्तु, हर जन्म में विवाह न करके, आख़री जन्म में तपस्या में लीन शिव को उनकी तपस्या के फलस्वरूप चुनकर संसार को यह समझाया है कि वास्तव में “नारी” को पुरुष की नहीं, अपितु “नारी” रूपी “शक्ति” को “शिव” की आवश्यकता है।
सोचिए, यदि शंकर ने कठिन तपस्या करके स्वयं को शिव न बनाया होता, तो क्या उन्हें “शक्ति” मिलती।?!
~विचार अवश्य कीजिएगा।।