मित्र/दोस्त/संगी/साथी(Friend)

मित्र/दोस्त/संगी/साथी(Friend)

क्या इस संसार में कोई भी आपका मित्र बन सकता है?

क्या आपकी पत्नी आपकी मित्र हो सकती है?

क्या आपकी संतान आपकी मित्र हो सकती है?

क्या आपके माता पिता आपके मित्र बन सकते हैं?

क्या आपके भाई बहन आपके मित्र हो सकते हैं?

क्या आपके गुरु आपके मित्र बन सकते हैं?

सबसे महत्वपूर्ण बात…

क्या आप स्वयं आपके मित्र बन सकते हैं?

यदि इन सभी रिश्तों का एक – एक कर हम विश्लेषण करें तो हमें सब समझ आएगा।

सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि मित्र होता क्या है? मित्र कहते किसे हैं?

उत्तर भी स्पष्ट है…

मित्र वह होता है, जो आपका साथी, आपका मार्गदर्शक, आपका सहभागी एवं आपको समझता है।

मित्र साथी है, क्योंकि, वह कठिन समय में आपका साथ देता है। मार्गदर्शक है क्योंकि, वह आपको सही मार्ग दिखाता है। सहभागी है क्योंकि, जो भी अच्छा या बुरा आप भोगते हैं, वह उसे भी कहीं ना कहीं प्रभावित करता है, अर्थात् उसे भी भोगना पड़ता है। वह आपको तब समझता है जब सभी आपको समझने में अक्षम होते हैं।

तो क्या हर व्यक्ति जो ये सब कार्य करता है, आपका मित्र हो सकता है?!?

जी नहीं, एक पत्नी अपने पति की या फिर पति अपनी पत्नि का मित्र हो ही नहीं सकता। क्योंकि, आप हर बात उनसे साझा नहीं कर सकते, आपको यह डर रहता है कि कहीं यह मेरी किसी बात को गलत रूप में लेकर मुझसे रिश्ता ना तोड़ दे। परन्तु कोई भी बात मित्र को बताने या कहने से पहले ज़रा भी नहीं सोचते।

इसी प्रकार आपकी संतान भी भी आपकी मित्र नहीं बन सकती। क्योंकि, जो बात हमने इससे पहले कही, यहां भी लागू होती है। यदि बिना सोचे समझे आप आपकी संतान से बात करेंगे तो वह कहीं न कहीं आपकी बातों को पकड़ कर अपने मतलब के हिसाब से आपका फ़ायदा अवश्य उठाएगी एवं आप उनके समक्ष अपना सम्मान खो देंगें सो अलग।

आपके माता पिता भी आपके मित्र नहीं बन सकते क्योंकि आप उनसे इतना खुलकर बात नहीं कर सकते जितना आप अपने मित्र से कर सकते हैं। आपके गुरु के साथ भी आपकी यही परिस्थिति रहेगी।

परन्तु…

आपके भाई बहन एवं आप स्वयं आपके मित्र अवश्य बन सकते हैं।

~आज़मा कर देख लीजिए।

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