
श्रीकृष्ण का चरित्र चित्रण
जब भी किसी को हम श्रीकृष्ण के चरित्र चित्रण का वर्णन करने को कहते हैं। लोग अपने हिसाब से, या कहा जाए अपनी सोच के हिसाब से उनकी यूं व्याख्या करते हैं।
कोई उन्हें छलिया कहता है, तो कोई उन्हें मायापती के नाम से संबोधित करता है, तो कोई उन्हें रास-रसैया भी कहता है।
सभी वर्णन एक तरफ, सबसे ज्यादा हास्यास्पद स्तिथि तब प्रस्तुत होती है, जब लोग उन्हें रास- रसैया कहते हुए बहुत ही कुटिल हंसी हंसते हैं।
जब भी किसी को चरित्र सुधार के बारे में कुछ समझाया जाए तो ऐसे मनुष्य सबसे पहले श्रीकृष्ण का चरित्र चित्रण करते हुए स्वयं के कुकर्मों को उनकी आड़ में छिपाने का भरसक प्रयास करते हैं।
ऐसे लोगों के मुख से हमें यही सुनने मिलता है- श्रीकृष्ण भी तो रास लीला करते थे। उनकी भी तो १६१०८ पत्नियां थीं, तो फिर हमें क्यों समझाते हो। हम भी उन्हीं की संतानें हैं, अतः हम भी वैसा ही करेंगें।
इस प्रकार की विलक्षण सोच रखने वालों को मैं सच में सलाम करने को तत्पर रहती हूं। यदि आपका सामना भी इस प्रकार के महान व्यक्तियों एवम् महानतम विभूतियों से हो तो उनसे मात्र एक प्रश्न अवश्य पूछिएगा कि यदि तुम उनकी संतानें हो। अतः इस प्रकार उनसे स्वयं की तुलना करना चाहते हो। तब तो तुम भी उन्हीं की भांति एक समय में, एक समान पल में, एक समान क्षण में १६१०८ स्त्रियों के समक्ष प्रस्तुत अवश्य हो सकते होंगे ?!?
ऐसे में यदि इन मनुष्यों का उत्तर हां है, तो इन व्यक्तियों की तस्वीरें एवं मूर्तियां आपके, घर, मोहल्लों एवं पूरे शहर के मंदिरों में श्रीकृष्ण के साथ अवश्य लगवाएं। इनके नाम पर बड़े – बड़े विशालकाय मंदिर अवश्य बनवाएं। इनकी पुष्पों एवं सुगंधित धूप-दीप से इनकी भी पूजा अर्चना आरम्भ कर दीजिए।
परन्तु, यदि इनका उत्तर नहीं है। तो इनकी पूजा अर्चना हेतु पुराने फटे टूटे जूते चप्पल, जूतों के हार, एक काली स्याही की दवात, सड़े हुए अंडे टमाटरों एवं समस्त प्रकार के सडे हुए व्यंजनों से अवश्य कीजिए।
क्यों ?!?
क्योंकि जो मनुष्य अपने ईश्वर तुल्य होने की घोषणा बड़े ज़ोर शोर से करता है, तो उसका सम्मान उचित तरीकों से, उचित माध्यम से उचित माप दंडों के अनुसार उचित पुरस्कारों से पुरस्कृत करके अवश्य किया जाना चाहिए।
~राह – दे – कृष्ण।
~ राधेऽऽऽ कृष्ण।