
समझ
“अरे लता यह क्या कर रही हो? बहु को ज्यादा अपनापन दिखाना उचित नहीं!” लता आंटी की ननद बोलीं।
परंतु, लता आंटी ने उनकी बातों को नज़रंदाज़ करते हुए उनकी बहू को गाड़ी, घर और उसकी स्वयं (बहु की) अलमारी की चाबी पकड़ाते हुए कहा- “ये सब अब तुम्हारी भी ज़िम्मेदारी है। एक- एक चाबी मैंने सभी घरवालों को दे रखी है, और अब तुम भी इस घर का हिस्सा हो तो तुम भी संभालो।”
मैं चुपचाप यह सब देख रही थी! परन्तु, कुछ ना बोली, सोचा मुझे क्या मतलब उनका आपसी मामला है। तभी उनकी बेटी ने पूछा- “मां जब बुआ ने मना किया, तो आपने भाभी को सारी चाबियां क्यों दीं? आपने उन्हें उनकी पसंद की नौकरी करने के लिए भी हां कह दिया। भैया को भी उनसे सदैव सही तरह से पेश आने को कहती रहती हो। मैं समझ नहीं पा रही हूं। आप यह क्यों भूल जाती हो कि वह आपकी बहू है और आप उनकी सास।”
तब आंटी ने उसे प्यार से समझाया- “क्या तुम कभी किसी की बहु नहीं बनोगी? क्या तुम्हारी शादी नहीं होगी? क्या तुम कभी नहीं चाहोगी की तुम अपनी मर्ज़ी का जीवन जिओ? देखो बेटा, मैं याद भी नहीं रखना चाहती कि मैं उसकी सास हूं। क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जो संघर्ष हम लोगों ने किया है, वो मेरी बहु भी करे। रही बात तेरी बुआ की तो उसने कौनसा हिटलर बनकर अपनी बहु को सम्भाल लिया! और फिर मेरी बहु मुझसे किस प्रकार पेश आती है, इससे उसका व्यक्तित्व दिखेगा। और मैं उससे किस प्रकार पेश आती हूं, उससे मेरा व्यक्तित्व दिखेगा।”
आंटी ने आगे कहना शुरू किया- “मेरे सास पन या मां पन दिखाने से तो वह अच्छी या बुरी नहीं बनेगी। वह मेरे साथ जिस प्रकार पेश आएगी वह उसकी सोच होगी। परन्तु, इस असुरक्षा की भावना के चलते, कि वह मेरे सर पे चढ़ गई तो मेरा सम्मान कम करेगी, मैं अपनी इंसानियत खोकर दुनिया की भेड़ चाल में शामिल नहीं होना चाहती।मुझे तो इस बात पर पूर्ण विश्वास है, कि यदि मैं उसे अपना बनाकर रखूंगी तब फिर भी वह मेरा सम्मान कर सकती है। परन्तु, उसके सपने छीनकर, उसे नीचा दिखाकर, उसकी सास बनकर, मैं उससे अपनी बेटी बनने की अपेक्षा नहीं कर सकती। और फिर यदि तुम किसी जानवर को देखो, जब वे अपनी स्वतंत्रता से इतना प्रेम करते हैं तो हम हमारी बहुएं, जो कि इंसान हैं, उनसे यह अपेक्षा क्यों करें कि वे अपने सपने, अपने स्वाभिमान को छोड़ दें। मैं एक स्त्री होकर दूसरी स्त्री की शत्रु नहीं बनना चाहती।”
आंटी आगे बोली- “यह सच है कि मैं उसकी सास नहीं बनना चाहती हूं। एक बात तुम ही बताओ क्या कभी तुम्हारी गलत बात पर मैंने तुम्हें समझाया नहीं? क्या ऐसा कभी हुआ है कि तुम्हें मेरी समझाई बात समझ ना आई हो? एक बात स्मरण रखो, मां बनकर ही मैं उसे सही राह दिखा सकती हूं, सास बनकर किसी प्रतिद्वंदी के रुप में नहीं। और तुम्हारे भाई को इसीलिए समझाती हूं क्योंकि मां होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि मैं उसे एक स्त्री का सम्मान करना सिखाऊं। उम्मीद करती हूं, तुम्हें अब मेरी बात पूर्ण प्रकार से समझ आ गई होगी।”
उनकी बेटी ने कहा- ” हां मां बिल्कुल मैं आशा करती हूं कि आप जैसी सास एवं मां सबको मिले।” कहकर दोनों ने एक दूसरे को गले लगा लिया।
इन दोनों की वार्तालाप सुनकर मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ। इतना मनोहर दृश्य एवं उनकी बातें मेरे हृदय को छू गई। मैं अपने घर तो आ गई परन्तु, आंटी की प्रेरणादायक सोच एवं बातें मेरे मन मस्तिष्क में घूमती रही। सच ही है यदि एक स्त्री दूसरी स्त्री की शत्रु बनना अस्वीकार कर दे, तो कितनी सारी पारिवारिक समस्याएं स्वतः ही सुलझ जाएंगी।
~आईये हम सभी मिलकर लें एक नई सोच को अपनाने की।
