ग्रहणी

कहानी:- गृहिणी:-
"अरे रीमा! क्या कर रही हो भई? इतनी देर हो गई, तैयार नहीं हुई क्या? अरे भई जल्दी चलो हमें देर हो गई तो कैफे बंद हो जाएगा!" नरेश ने रीमा से कहा।
रीमा जल्दी-जल्दी अपने बाल संवारने लगी। तभी उसके पति नरेश उसके सामने खड़े हो गए, मुस्कुराते हुए बोले- "अरे बाबा! इतनी भी जल्दी मत करो, आराम से तैयार हो जाओ, बस समय से निकल लेंगे तो अच्छा होगा। इसीलिए तुमसे कह रहा था।"
रीमा एक गृहिणी है। गृहिणी....... कितना छोटा-सा शब्द है ना!
जितना छोटा लगता है, उतना ही प्रभावशाली एवं मनोहर भी। परन्तु, आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कहां किसको फुरसत है? इस शब्द के मायने समझने की।
अब आप पूछेंगे ऐसी भी क्या बड़ी बात है इसमें? आजकल तो लड़कियां चांद पर जा रहीं हैं। डॉक्टर इंजिनियर बन रही हैं, तो एक गृहिणी होने में क्या उपलब्धि है?
यही प्रश्न रीमा ने नरेश से पूछा! वे दोनों जैसे ही कैफे पहुंचे, एक व्यक्ति उन्हें उनकी बुक की हुई जगह पर ले गया। बैठते ही रीमा ने नरेश से पूछा तो नरेश बोले- "कैसी बात कर रही हो रीमा तुम? मैं भली प्रकार से जानता हूं कि तुम शादी से पहले ख़ुद की पहचान बनाना चाहती थीं। परन्तु, घर की जिम्मेारियों के बीच तुमने अपनी इच्छाओं, अपने सपनों को एवं अपनी पहचान को कहीं दबा दिया। गोल्ड मेडलिस्ट होने के बावजूद तुमने हम सबके लिए क्या कुछ कर रही हो!"
जब रीमा ने नरेश के मुख से यह सब सुना तो उसकी आंखें भर आईं।
नरेश एकदम से बोले- "अरे यह क्या तुम तो भावुक हो गईं, तुम्हें दुःखी करने के इरादे से थोड़े ना यह सब कहा मैंने।" नरेश ने रीमा के आंसू पोछते हुए कहा।
रीमा आश्चर्य भरी निगाहों से नरेश को देखते हुए बोली- "आज अचानक आपको यह सब क्यों महसूस हो रहा है?"
नरेश ने कहा- "जानता और समझता तो मैं पहले से था। किन्तु, जताना एवं बताना नहीं आता था। परन्तु, जब मैंने अपनी प्यारी बेटी में तुम्हारी छवि देखी, तब एहसास हुआ कि जैसे जीवनसाथी की कल्पना मैं अपनी बेटी के लिए कर रहा हूं, उसकी हकदार तुम भी तो हो।" कहकर नरेश ने रीमा का हाथ थाम लिया।
तभी दोनों के लिए भोजन भी प्रस्तुत हो गया। और दोनों ने खुशी-खुशी भोजन करके अपने घर का रुख लिया।
रीमा की निगाहें नरेश पर से हट ही नहीं पा रहीं थीं। आज मानों फ़िर से रीमा को एक नई ज़िंदगी उपहार में मिली थी।
बार-बार मन ही मन वह ईश्वर का आभार व्यक्त कर रही थी। नरेश को भी अच्छे से समझ आ गया था कि अपने दाम्पत्य जीवन को सदैव खुशहाल, हरा-भरा एवं महकता हुआ कैसे रखा जा सकता है!?!
सच ही तो है, हम अपने घरों की गृहिणियों को देते ही क्या हैं भला? सिर्फ़ आदेश !! यह होना चाहिए, वह होना चाहिए, यह कमी है, वह ज़्यादा है। और वे बेचारी उनकी सारी उम्र स्वयं को निखारने एवं गलतियां सुधारने में ही व्यतीत कर देती हैं। जैसे हम तो एकदम "परफेक्ट" हैं। हमसे तो कभी कोई भूल होती ही नहीं।
एक गृहिणी आपके घर-परिवार को सजाती है, संवारती है, उसे महकाती है। कैसे कर लेती है वह ये सब?
गौर से देखिएगा कभी उस महक में, उस सजावट में आपको उनके टूटे हुए सपनों के टुकड़े मिलेंगे। उनके पसीने की महक मिलेगी। जब भी नजदीक से उन्हें देखेंगे, तो पाएंगे किस प्रकार दिन-रात वे अपना पूरा श्रम, पूरे सपनें आपके सपनों और अपनों के लिए दांव पर लगा देती हैं। एक कर्मचारी को भी कम से कम एक रविवार की छुट्टी तो नसीब होती है। परन्तु, पता नहीं ईश्वर ने गृहिणियों को किस मिट्टी से बनाया है? ना तो वे रुकती हैं, ना ही वे थकती हैं! और बदले में कौनसा वो "सैलरी" लेती हैं?
कभी स्वयं को उनके स्थान पर रख कर देखिए, आपको उनकी अमूल्यता का एहसास हो जाएगा। तब शायद आपको महसूस हो कि वह किस सम्मान की हकदार हैं? किसी के लिए अपने सपनों का त्याग करना सरल नहीं होता। परन्तु, वे इस त्याग को कितनी सरलता से करती हैं। एकदम निस्वार्थ सेवा! यह है एक गृहिणी का परिचय।
यदि आपके घर में भी कोई गृहिणी है, तो कृपया उन्हें समझिए, उनके सपनों को पूर्ण करने में उनका सहयोग कीजिए। बेहद हल्का महसूस होगा आपको।
~कोशिश करके देखिए।
स्वरचित एवम मौलिक रचना
~स्वाति शर्मा (भूमिका)
One thought on “ग्रहणी”
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