कविता

कविता

विश्वास

जितना सरल है जंग जीतना,
इसे जीतना उससे कठिन है।
एक बार जो यह टूट जाए,
फिर से जुड़ना बहुत कठिन है।
अपनों के बीच की है पक्की डोर,
फिर चाहे सांझ हो चाहे भोर।
जब यह पास होता है,
हम कभी नहीं होते बोर।
ना ही हमें होता किसी का भय,
यह बना देता है सबको निर्भय।
इसका रिश्तों में जब होता आभास,
तभी बढ़ता है सबमें विश्वास।
सभी चाहते हैं इसकी बस्ती हो,
हर आंगन और हर आवास।

आईना

आईना हमेशा सच बोलता है,
हृदय के सारे राज़ खोलता है।
कितना भी छुपाएं हम अंदाजे बयां,
चुपके से सारी परतें खोलता है।
आइना हमेशा सच बोलता है।
हम कभी झूठ कहें या फिर सच बोले,
मन चाहे हमारा कहीं भी डोले।
दिमाग चाहे कुछ भी छुपाए,
आईना मगर सबकुछ हमें सच बताए।
वो कहता है मान लो मेरी बात,
वर्ना, पछताओगे जब हो जाएगी सांझ।
भोर होते ही जाग जाओ,
कुछ तो सम्मान अपनी नज़र में भी कमाओ।
स्वयं को तुम पूरा कर लो स्वीकार,
आईना बस यही कहता है बार- बार।

सफलता

कुछ पाने की आस,
कुछ अपने ख़्वाब हैं खास
कुछ दर्द भरी रातें
कुछ कर जाने की बातें
कुछ कहीं से आहट आए
बेताबी हमें सताए
कोई कहे मैं तुम्हें दिला दूं
कहीं से हो जाए काश कोई जादू
यह कहे तुमसे
गहरी मीठी नींद में
सुला दूं
फिर तुम्हें उसी
नींद से जागा दूं
किसी को मिल जाए
किसी को पता चल जाए
कोई इसी लालसा
में खो जाए
कोई चैन से सो
ना पाए
किसी का ज़ोर
जिस पर नहीं चलता,
वह है सफलता।

दीपावली

रोशनी का भंडार,
लाए खुशियां ही खुशियां अपार।
हंसी-ठहाके बेशुमार,
अपनों का प्यार और दुलार।
मस्ती की फुहार,
पकवानों का खुमार।
रंग-बिरंगे पटाखे, नए कपड़े और उपहार,
मुबारक हो आपको दीपावली का त्यौहार।

विकास

विकास की लहर ऐसी चली
चप्पा-चप्पा गली-गली

हर शक्श है ज्ञानी आजकल
ज्ञान का पिटारा सबके पास है हर पल

सबकी जीवन शैली है बिंदास
दूर करो अब भारी भरकम खटास

ज्ञान ही है विकास की सीढ़ी
यह बात गांठ बांध लो अब दीदी

अज्ञानता का अंधकार मिटाओ
ज्ञान की ज्योत सबमें जगाओ

साथ में मिलकर झूमों नाचो गाओ
बड़े छोटे का भेद मिटाओ

खुशी के गीत साथ में गाओ
विकास की ओर कदम बढ़ाओ।

आइसक्रीम

गर्मी में जो ठंडक दिलाए,
सबके मन को है वो भाए।
बच्चे बूढ़े और जवान,
सबको अपनी याद दिलाए,
अपनी ठंडी सी पहचान बताकर।
सबके चेहरों पर मुस्कान लाए,
यही है गर्मी में सबकी सबसे अच्छी दोस्त।
आइसक्रीम है उसका नाम,
जिसको हम नहीं कर सकते आपको पोस्ट।

अफसाना स्वयं का

हम सोचते थे अफसानों के बारे में,
रुक गए लोग रास्ते से घर जाने में।

हम अफसानों को हक़ीक़त में बदलते रहे,
लोगों के लिए अनजाने में।

कुछ उमर गुज़र गई खाने में,
कुछ उमर गुज़र गई पचाने में।

कुछ उमर गुज़र गई इतराने में,
कुछ उमर गुज़र गई आजमाने में।

कुछ उमर गुज़र गई समझाने में,
कुछ उमर गुज़र गई समझ जाने में।

जब लोगों की आंखें खुली,
रोकने वाले ख़ुद रुक गए।

हक़ीक़त के अफसाने और,
अफसानों की हक़ीक़त देखते रह गए।

फूल

कांटों पर रहकर हंसते हैं फूल,
हंसकर सारे गम जाते हैं भूल।

शिक्षा सभी को देते हैं ये, हंसने मुस्कुराने की,
कठिन समय में भी, जीत जाने की।

देशप्रेम

एक ऐसी दुनिया बसाओ
देश प्रेम सबके दिल में जगाओ
अहिंसा का सबको मार्ग दिखाओ
समान अधिकार सबको दिलाओ
ज्ञान की ज्योत जलाओ
सबके मार्ग पुष्प सजाओ
सही गलत में अंतर बताओ
स्त्री पुरुष का भेद मिटाओ
हम सब एक हैं सबको जताओ
सत्य पर से पर्दा हटाओ
अज्ञानता का अंधकार घटाओ
असाक्षर रूपी बादल छटाओ
प्यारा सा संसार बसाओ
देशप्रेम सबके दिल में जगाओ।

स्वरचित एवम मौलिक रचना

वृद्धावस्था

वृद्धावस्था की चौखट पर आकर,
जब भी कोई यह पूछता है।
क्या आपने पाया क्या खोया,
तब उसका मन यह सोचता ही।
सबसे पहले ख्याल आता है,
कौन था अपना ? कौन पराया।
किसने हमको कितना हंसाया,
और किसने कितना रुलाया !
जब अपने और परायों का हिसाब जुड़ता है,
तब यह दिल धड़क-कर सब सुनता है।
अंत में काम अनुभव ही आया,
हमने बदले में केवल यही कमाया।
यदि कर्म अच्छे हों तो मन चैन की सांस लेता है,
यदि कर्म बुरे हों तो मन सदा ही बेचैन रहता है।
वृद्धावस्था की चौखट पर आकर,
अक्सर हर मन यही समझता है।

आमदनी

आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या,
हार बहन से बोले उसका भैया।
पढ़ लो जितना पढ़ सकते हो,
वर्ना जब जीतने होंगे सपने,
भरनी होगी उड़ान,
करने होंगे खर्चे,
उठानी होगी जिम्मेदारी,
और ढूंढनी होगी पहचान,
तब पड़ेंगे हमपर डंडे,
और याद आ जाएगी हमको मैया।

संगीत

सांसों से जो धुन सजाए,
प्रेम की मुरली जो सुनाए,
दुःखी मन की जो व्यथा बताए,
सोए को जो फिर से जगाए,
हार को जो जीत दिलाए,
मिलन की जो आस जगाए,
बिछड़े प्रेमी जो मिलाए,
पाने की जो हसरत जगाए,
भटके को जो राह दिखाए,
आंखों से जो आंसू चुराए,
हौंसले की जो चमक जगाए,
देशप्रेम की अलख जगाए,
भक्ति की जो ज्योत जलाए,
सात सुरों को जो मोतियों-सा सजाए,
वो है संगीत, वो है संगीत, वो है संगीत।

विदाई

सबको एक पल में रुलाकर
अपनों से बिछड़ने का दर्द जगाकर
गैरों और अनजानों को अपनाकर
सबके हृदय को धड़काकर
आंसुओं की धारा बहाकर
भय और असुरक्षा की भावना जगाकर
बड़े-बड़ों के अनुभव बताकर
अच्छे अच्छों को हिलाकर
हमने आपको एक दुल्हन दिखाई
जो है, ना अपनी ना ही पराई
फिर भी सबके मन को भाई
सबकी एक जैसी ही होती है विदाई।

ज़िंदगी

ज़िंदगी हमें जीना सिखाती है।
हमें चलना आए ना आए,
चलना सिखाती है।
हम लाख कोशिशें करें मुंह मोड़ने की,
वो हमें सामना करना सिखाती है।
हमें चाहे चित्रकारी आए या ना आए,
मगर रंग भरना सिखाती है।
कदम यदि लड़खड़ाएं कभी हमारे,
तो हमें संभलना सिखाती ही।
चाहे कभी रातों की नींदें उड़ भी जाएं हमारी,
फिर भी हमें सोना सिखाती है।
जब किसी बात से हम अकड़ जातें हैं,
तो हमें झुकना सिखाती है।
जब कभी हम थक जाएं,
तो हमें रुककर बैठना सिखाती है।
जब हम बेरंग हो जाते हैं,
तो हंसना- मुस्कुराना सिखाती है।
जब कभी हौंसला टूट जाता है हमारा,
तो हमें मज़बूत बनना सिखाती है।
जब कभी हम मौन हो जाते हैं,
तो हमें बोलना सिखाती है।
जब कभी हम हार जाते हैं,
तो हमें लड़ना सिखाती है।
ज़िंदगी हसीं होती है दोस्तों,
नित नया पाठ हमें पढ़ाती है।
हां, हर कदम पर हमें आजमाती है ,
लेकिन यह सच है, ज़िंदगी हमें जीना सिखाती है।

अनाज

इसकी क्या कीमत पूछते हो जनाब,
इसका स्वाद होता न कभी खराब।
जब भी पूछोगे इसका हिसाब,
भूल जाओगे खाना कबाब।
इंसान से लेकर परिंदो तक सब जाने इसका स्वाद,
जो है सभी की ज़रूरत लाजवाब।
जिसको खाने में कभी न आए लाज,
उसका नाम है केवल… अनाज।

स्वरचित एवम मौलिक रचना