कहानी

कहानी

झाड़ू-पोछा

“क्या मम्मा आप भी ना, इतना – काम करने में इतना समय लगा देती हो! फ़िर नाश्ते की दवाई लेने में देर होती है। थोड़ा अपनी सेहत का भी ख्याल रखा करो ना।” भूमिका अपनी मां से थोड़ा झल्लाकर बोली।

मां चुपचाप अपने काम में लगीं रहीं। भूमिका बड़बड़ाई – “ये मम्मा भी ना सुनतीं ही नहीं हैं। कितनी बार कहा है हमें भी कुछ काम बता दिया करो, पर नहीं इनको तो सारा काम खुद ही करना है। फ़िर रोज़ दवाई देर से लेती हैं । कोई ‘शेड्यूल’ ही ‘सेट’ नहीं है इनका। सुबह भी झाड़ू-पोछे में कितना समय बर्बाद करती हैं। फ़िर बाते करने बैठ जाती हैं। यूं तो नहीं कि पहले जल्दी से सारा काम ख़त्म कर लें। कितनी बार कहा है टाइम से सब निपटाकर जल्दी नहा-धोकर नाश्ता कर लिया करो। पर नहीं इनको सबकी चिंता है। बस खुद के मामले में ही लापरवाही करती हैं। समझ नहीं आता रोज़-रोज़ कहां तक समझाऊं इनको!?!”

यह सब भूमिका के घर की रोज़ की बातें थीं। एक रात भूमिका को बहुत गुस्सा आया। उसने मन ही मन ही मन यह निश्चय किया कि उसकी मां यदि अपनी सेहत के प्रति लापरवाह हैं तो, वह भी उनकी ही बेटी है। उनको सारा कार्य समय पर निपटने हेतु वह उन्हें प्रेरित करेगी। अथवा ऐसा करने हेतु उसने एक योजना बनाई। जिसके अन्तर्गत उसने सुबह ५ बजे उठने का निश्चय कर लिया।वह मन ही मन बुदबुदाई- “देखती हूं कैसे समय से नहीं निपटती मम्मा। कल सुबह जल्दी उठकर सारे घर का झाड़ू-पोछा मैं ही करूंगी। तब देखती हूं कैसे लापरवाही करतीं हैं वो ?!?”

पक्का निश्चय कर भूमिका रात को जल्दी सोने चली गई। सुबह ५ बजते ही अलार्म बजा। वह झट उठकर खड़ी हो गई, नज़र इधर-उधर घुमाकर देखा तो पाया कि सभी लोग गहन निद्रा में सो रहे थे। वह चुपचाप उठी और घर का झाड़ू निकालने लगी। उसे स्वयं पर बड़ा भरोसा था। वह मन ही मन यह सोचकर खुश हो रही थी कि आज तो मम्मा की परी उनकी ‘रोल मॉडल’ बनेगी।”

पूरे घर का झाड़ू लगाकर जैसे ही घड़ी पर नजर पड़ी, उसने देखा अब तक ५:३० बज चुकी थी। “अरे वाह मैंने तो आधे घंटे में पूरे घर का झाड़ू लगा दिया। अब तो बस पोछा बचा है।” वह जल्दी से पोछा लेकर आई और लगाना आरम्भ किया। अब तक घर के सभी लोग जाग चुके थे। मां ने उसको देखा तो टोकते हुए कहा- “बेटा क्यों परेशान हो रही हो मैं लगा लूंगी।” वह बोली- “नहीं मैं कर लूंगी आप तो बस समय से नहा-धोकर नाश्ता कर लेना।” इस प्रकार उसकी मां भी अब जल्दी काम से मुक्त हो समय से नाश्ता करने लगीं। यह प्रक्रिया १२ दिन तक यूंही चलती रही। अब आज १३ दिन होने वाले थे। परन्तु, यह क्या भूमिका अलार्म बंद करके सोई तो उठ ही नहीं पाई। अचानक किसी आवाज़ से उसकी निद्रा टूटी तो उसने पाया घड़ी में ६:३० बज रहे थे। वह हड़बड़ाकर उठी मन में बोली- “आज तो देर हो गई।” और जल्दी से झाड़ू उठकर लगाने लगी। अब तक मां को भी समझ आ चुका था कि काम तो यही करेगी, इसीलिए मां ने उसे कुछ नहीं कहा। जल्दी-जल्दी झाड़ू कर वह पोछा लगाने लगी।

अरे यह क्या! उसकी कमर में इतना दर्द। उसके बिना बोले ही मां समझ गईं बोली- “तू रहने दे मैं कर लूंगी, तेरी कमर में दर्द भी तो है।” भूमिका ने मां से साफ मना कर दिया कहा- “आप तो अपना काम करो मैं सब कर लूंगी। अब आख़िरी कमरा बचा था। परन्तु, भूमिका की हालत ऐसी थी कि उससे हिला तक नहीं जा रहा था। वह ज़मीन पर पसर कर बैठ गई। थोड़ी देर बाद स्वयं को हौंसला दिलाते हुए फ़िर से काम में जुट गई। पूरा काम करके उसने जब घड़ी की ओर नजर घुमाई तो, चौंक गई। ९:०० बज चुके थे। थकान से निढ़ाल होकर पलंग पर आराम करने हेतु लेटी। मन ही मन विचारने लगी- “जब मेरा इतने से दिनों में पूरे घर का झाड़ू- पोछा करने में यह हाल हुआ है। तो, बेचारी मां कैसे इतना सब करतीं होंगी। उनकी भी कमर दर्द होती होगी। परन्तु, वह कभी चेहरे पर भी नहीं आने देती।

भूमिका को मन ही मन पश्चाताप हो रहा था। वह सोच रही थी, मां सच में कितनी महान हैं! कभी अपनी थकान का ज़िक्र भी नहीं करतीं। दिन-रात सबके लिए लगीं रहतीं हैं। उनको भी थकान होती होगी और एक मैं हूं जो, उन पर बेवजह गुस्सा होती हूं। ज़रूर उनकी कमर में भी दर्द होता होगा । इसीलिए वह थोड़ी देर बैठ जाती हैं। परन्तु, हम लोग कहां यह समझ पाते हैं। आज से मैं अपनी मम्मा को कुछ भी कहने से पहले स्तिथि को समझने की कोशिश ज़रूर करूंगी।” उसने मन ही मन दृढ़ निश्चय किया।

सच ही तो है हमारी मां हमारे लिए जो भी करतीं हैं। हम उसका मोल तब समझ पाते हैं, जब उस स्तिथि में स्वयं को पाते हैं। आज से निश्चय कीजिए जब भी आप अपने माता-पिता को समझाएं पहले स्वयं को उस स्तिथि में अवश्य रखकर देखें। उनके कार्य को स्वयं करके देखें। तब समझ आएगा कि उनको क्या समझाना आवश्यक है अथवा क्या नहीं।

~सोचिए, चिंतन कीजिए हल अवश्य निकलेगा।

तुम मेरे चांद हो

विनय एक बहुत ही शांत स्वभाव का लड़का था। औरतों का सम्मान करता था। दिखने में सुंदर भी था, परंतु थोड़ा अंतर्मुखी स्वभाव का था। उसके रिश्ते के लिए कई जगह बाते चल रही थी। परंतु, वह किसी और लड़की को पसंद करता था, उस लड़की का नाम नम्रता था। यह बात वह उस लड़की को कहने से डरता था। उसको लगता कि कहीं वह लड़की उससे नाराज ना हो जाए, कहीं उसे मना ना कर दे, वगेरह – वगेरह।

एक दिन एक मनचली लड़की की नज़र उस पर पड़ी। वह हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गई। उस लड़की ने कहीं से विनय का फ़ोन नंबर भी पता कर लिया। वह उसे फ़ोन करके रोज़ परेशान करने लगी। उससे उल्टी -सीधी बातें करती। लेकिन वह परेशान नहीं होता था। एक दिन उस लड़की ने हद ही पार कर दी। उसे कहीं से यह पता चल गया कि विनय किसी मॉल में गया हुआ है। बस फिर क्या था उस लड़की ने वहां तमाशा करना शुरू कर दिया। विनय चूंकि महिलाओं का सम्मान करता था, उसे कुछ ना बोला। परंतु, उस लड़की ने धीरे- धीरे सभी हदें पार कर दी। वह जो मुंह में आया उसे बोलने लगी। विनय सीधा और बेवकूफ तो नहीं था। परंतु महिलाओं का सम्मान करता था, और अपने इसी स्वभाव के कारण उस लड़की की बदतमीजियों को सहन करता रहा।

तभी अचानक नम्रता वहां आ गई। यह शायद नियति का ही खेल था। नम्रता ने जब यह सब देखा तो उस लड़की के पास जाकर उसे ज़ोर का तमाचा मारा। वह लड़की सकपका गई और खिसियाई। नम्रता उससे बोली – “क्यों… लडको की क्या कोई इज्जत नहीं होती, बहुत देर से तुम्हें देख रही हूं। जो मुंह में आ रहा बोले जा रही हो। अगर कोई शरीफ आदमी तुम्हारे सम्मान के कारण कुछ बोल नहीं रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम उसे इस तरह अपमानित करती रहो। जब बात लड़कियों के सम्मान की आती है। तब तो तुम लोग मोर्चा लेकर खड़ी हो जाती हो। वो बात ठीक है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि लड़कों की कोई इज़्ज़त और सम्मान नहीं होता। अगर तुम्हें सम्मान चाहिए तो तुम भी दूसरों को सम्मान देना सीखो। वो तो इस लड़के की शराफत है कि यह तुमसे कुछ कह नहीं रहा, कोई ओर होता तो दो मिनट में तुम्हें ठीक कर देता। अब खड़ी- खड़ी मेरा मुंह क्या देख रही हो? निकालो यहां से और अगर थोड़ी भी शर्म बाकी हो तो दुबारा किसी लड़के को परेशान करने से पहले सोच लेना कि कहीं कोई लड़की उसका संरक्षण करने हेतु फिर से तुम्हारी इज़्ज़त की धज्जियां ना उड़ा दे।”

वह लड़की चुपचाप वहां से चली गई। विनय ने नम्रता को धन्यवाद कहा और उसे अपनी कार में उसके घर तक उसे छोड़ने का प्रस्ताव रखा। दोनों कार में बैठकर नम्रता के घर पहुंचे। कार से उतरकर दोनों नम्रता के घर जा ही रहे थे कि तभी अचानक पूरे शहर की बिज़ली चली गई नम्रता ने विनय से कहा – ” आज अमावस्या है, आप ज़रा संभलकर चलिएगा कहीं आपको ठोकर ना लग जाए। मुझे तो रास्ता मालूम है, लेकिन आपको नहीं पता। विनय ने तपाक से उत्तर दिया – “अमावस्या है तो क्या हुआ मेरा चांद तो तुम हो, फिर भला मुझे ठोकर कैसे लग सकती है?” नम्रता मुस्कुराई और बोली -” और तुम मेरा चांद हो तो, मैं भला किसी और को तुम्हें कैसे धूमिल करने दे सकती थी। अगर भविष्य में इस तरह की समस्या हो तो आप बेझिजक मुझे कह सकते हो।” विनय को नम्रता से बिना कुछ कहे ही अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था। अतः दोनों ने अपने परिवार वालों से बात की और कुछ समय पश्चात् दोनों का विवाह हो गया और दोनों खुशी- खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।