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जातिवाद/ Casteism

“हिन्दू” समाज में अक्सर जातिवाद को लेकर काफ़ी कुछ घटनाएं सामने आती हैं। आखिर क्या है यह जातिवाद ? क्यों लोग जाति-भेद करते हैं ? इसके पीछे लोगों की कौनसी मानसिकता ज़िम्मेदार होती है?

मुझे स्मरण है बचपन से ही मैंने कभी इस प्रकार के भेदभाव को महसूस नहीं किया । सभी भले लोग एक ही जैसे लगते थे। और सभी “ना भले” लोग एक समान ही अपवाद महसूस होते थे।

यहां मैंने बुरे लोगों के स्थान पर “ना भले” लोग शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि मेरा मानना है कि लोग अच्छे या बुरे नहीं होते अपितु हमें लेकर उनके इरादे उन्हें हमारे समक्ष अच्छा या बुरा साबित करते हैं।

एक व्यक्ति यदि आपके लिए अच्छा साबित हो रहा है, तो यह आवश्यक नहीं कि वह किसी और के साथ भी अच्छा ही साबित हो। फिर वह चाहे किसी भी जाति का हो, तो फिर यह जाति भेद वाली बात कहां से आ गई?

मुझे आजतक एक बात समझ नहीं आई कि आखिर कोई किसी की जाति को लेकर यह घोषणा किस प्रकार कर सकता है कि यह उच्च जाति का है वह नीच जाति का है? जब मनुष्य को बनाने वाले ईश्वर इनके मध्य भेद नहीं करता तो, हम मनुष्य क्या उस ईश्वर से भी महान एवं श्रेष्ठ हैं?!?

जाति भेद का ही नतीजा आज आरक्षण के रूप में हम सभी के समक्ष प्रस्तुत है । तो क्या जब आरक्षण नहीं था, तब स्तिथियां सुलझी हुई थीं ? क्या आज हम होनहार व्यक्तियों को केवल आरक्षण के कारण खो रहे हैं?

जी नहीं, मैं इस बात से पूर्णतया असहमत हूं। लोगों को अक्सर कहते सुना है कि आरक्षण के कारण अयोग्य व्यक्ति ऊँचे स्थान पर पहुंच जाते हैं एवं योग्य हाथ मलते रह जाते हैं। परन्तु, मैं आपसे यह पूछना चाहती हूं कि जब आरक्षण नहीं था तब क्या ऐसा नहीं था? उत्तर स्पष्ट है- जब आरक्षण नहीं था, तब भी अयोग्य व्यक्ति ऊंचे स्थान पर आरूढ़ थे एवं होनहार व्यक्तियों को नीच जाति का करार देकर उस स्थान से वंचित रखा जाता था।

पहले भी चापलूस एवं जान-पहचान से लोग मंत्री, महामंत्री, विशेष सलाहकार इत्यादि स्थानों पर सुशोभित थे। यह कोई नई बात नहीं। नई बात तो तब होगी, जब हम सभी यह संकल्प लें कि कोई भी मनुष्य ऊंच या नीच उसकी जाति या धर्म से नहीं, अपितु उसके कर्म एवं उसके गुणों के आधार पर निश्चित किया जाए।

जब कोई अपनी पुत्री या पुत्र के विवाह हेतु लड़का या लड़की देखने निकलता है, तब जाति-धर्म को एक तरफ कर, उचित एवं योग्य व्यक्ति का चुनाव ही किया जाना चाहिए। अन्यथा रिश्तों के अलगाव एवं उनके विध्वंस को हम कदापि नहीं रोक पाएंगे।

उचित निर्णय और चुनाव हो तो मानवता, गुण एवं कर्मो के आधार पर होना चाहिए, ना कि जाति-धर्म या फिर डिग्री के आधार पर। फिर चाहे वह चुनाव किसी पद, प्रतिष्ठा हेतु हो या फिर अपनी संतान के लिए जीवन-साथी चुनने हेतु।

यदि ऐसा कुछ बदलाव हमारे समाज में आ जाए, तब ही सही मायनों में मानवता की विजय संभव है।

~एक विचारणीय तथ्य।

आलोचक एवम् प्रशंसक

अक्सर देखने में आता है, और आपने भी महसूस किया होगा हमारे जीवन में दो प्रकार के लोग होते हैं। एक प्रशंसक, जो सदैव हमारे बारे में अच्छा बोलते हैं, हमसे खुश रहते हैं, हमारे हर कार्य में हमारा पक्ष लेते हैं, अतः हमारी हर क्रिया पर हमेशा एक सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं।

दूसरे आलोचक, जो सदैव हमारी निंदा करते हैं, हमारे विपरीत खड़े रहते हैं, एवं इस बात के इंतज़ार में होते हैं, कि कब हमसे ज़रा-सी गलती भी, गलती से हो जाए, तो बस खींच लें हमारा पैर, और गिरा दें हमको ज़मीन पर।

आपको पता है, ये दोनों ही प्रकार के प्राणी हमारे जीवन में बहुत अहम “भूमिका” निभाते हैं। ये दोनों ही हमें चलना, गिरना, चोट खाना और फ़िर संभलना सिखाते हैं। अब यदि मैं दोनों में से एक को भी,…… ध्यान दीजिएगा, एक को भी अपने जीवन से निकाल दूं, तो जानते हैं क्या होगा?!?

होगा यह…… ना तो मैं गिरने का मतलब समझ पाऊंगी और ना ही संभलने का, ना ही प्रशंसक का एवं ना ही आलोचक का!

यह विषय मेरा सबसे प्रिय, सबसे ‘favourite’ विषय है। अतः इसके बारे में बात करना मुझे बेहद रोचक लगता है। अब गौर करने वाली बात यह है, कि इन दोनों में भी दो “categories” होती हैं।

पहले… प्रशंसक, जो कि दो प्रकार के होते हैं। पहला वो, जो आपकी हर बात में प्रशंसा करेगा, यह भी नहीं देखेगा कि आपने वह कार्य सही किया है या गलत, ऐसे लोगों से सावधान रहिए, वो आपकी प्रगति में कोई ऐसा बड़ा योगदान नहीं देने वाले। अतः वे चापलूस हो सकते हैं, या फ़िर हो सकता है, वे आपसे बेहद भरोसा करते हैं। अतः उन्हें लगता है कि आप जो करेंगें वो सही ही करेंगें।

दूसरे आलोचक… जो कि दो प्रकार के होते हैं। एक वे, जो आपकी हर क्रिया के विरोध में खड़े पाए जातें हैं। आप जो भी करें जो भी कहें उसमें से वे नकारात्मक पहलू कहीं से भी ढूंढ़ कर निकाल ही लेते हैं। उनकी पूरी कोशिश होती है, कि आप एक बार गिर जाएं, और ऐसे गिरें कि कभी उठने की हिम्मत ही ना कर पाएं।

वे आपकी यदा-कदा गलती से प्रशंसा कर भी दें, परंतु जैसे ही उन्हें लगेगा कि आप खुश हो रहें हैं, आत्मविश्वास में आ रहे हैं। वे आपको तुरन्त ही गिरा देंगे, ऐसी हालत के देते हैं कि आप सोचेंगे, कि ये ना तो मुझे जीने देगा ना ही मरने।

दूसरे आलोचक वे, जिनमें थोड़ी इंसानियत, थोड़ी संवेदना होती है। वे आपके विरुद्ध अवश्य होते हैं, परन्तु जब उन्हें यह लगता है कि आपकी मदद करके या आपका पक्ष लेकर उनका कुछ फ़ायदा हो सकता है, तो वे आपका साथ दे देते हैं। ये इतने ख़तरनाक नहीं होते।

पहले प्रकार के आलोचकों से सतर्क रहने की आवश्यकता हमें अधिक होती है, क्योंकि उनका दिन-रात खाना-पीना, उठना-बैठना सब आपके लिए होता है। वे सदैव आप ही के बारे में सोचते हैं कि कैसे आपको गिराएं। परन्तु…… इनमें एक रोचक विशेषता होती है, वह ये कि ये लोग आपको अपनी इतनी ऊर्जा देते हैं, जितनी आपके प्रशंसक भी आपको नहीं दे पाते।

ऐसे व्यक्तियों के कारण आप कार्य को सही तरीक़े से करना सीखते हैं। इसीलिए इनसे सावधान अवश्य रहिए, परन्तु घबराइए नहीं। क्योंकि असल में ये, वे लोग हैं, जो आपको घिस-घिस कर चमका देते हैं। आपके मस्तिष्क को बेहद ही परिपक्व, कुशाग्र एवं तेज़ बना देते हैं।

जानते हैं कैसे?!?

क्योंकि अब आप इनके समक्ष जो भी कार्य करेंगें उसे सम्पूर्ण निपुणता से करने की चेष्टा करेंगें। परन्तु हास्यास्पद स्थिति यह है, कि ये मनुष्य बेचारे यह नहीं जान पाते कि वे आपको अंजाने में अपनी इतनी ऊर्जा दे रहे हैं, जिससे आपका मार्ग प्रशस्त एवं उनका मार्ग अवरुद्ध हो रहा है।

इस संदर्भ में, मैं एक बात महसूस करती हूं, कि ईश्वर ने हम सबके भीतर एक ऐसी चीज़ छुपा रखी है, जिससे हम स्वयं का ही भला कर सकते हैं एवं स्वयं का ही बुरा। दूसरे का ना तो भला कर सकते हैं और ना ही बुरा!

अतः मुस्कुराइए जनाब आप पूर्णतया सुरक्षित हैं!!!

चुनना आपको है, कि उपर्युक्त व्यक्तियों में से आपको क्या बनना है?!?

सोच के सोचिएगा…… आपकी यात्रा मंगलमय हो।!।

Inspiring persons यानी प्रेरणादायक लोग

एक बेहद ही हास्यास्पद वाक्या मेरे समक्ष आया। तब inspiring persons पर थोड़ी दया आयी और जो लोग उनसे inspire होते हैं, उनपर हंसी और दया दोनों।

किसी से प्रेरित होना, अच्छी बात है, परन्तु प्रेरित होकर उनसे आशा रखना, unwanted expectations रखना गलत है। ठीक है, अच्छी बात है आप किसी से प्रेरित हुए, तो उस प्रेरणा को अपने ‘talent’ में अपनी योग्यता में शामिल कीजिए।

देखिए मैं ये सब इसीलिए कह रही हूं, क्योंकि, आमतौर पर जब लोग किसी से प्रभावित या प्रेरित होते हैं, वे या तो बिल्कुल “too copy”, “ditto” वैसा ही बनना चाहते हैं, या फिर उस प्रेरणादायक प्राणी को पाना चाहते हैं, हासिल करना चाहते हैं, जीतना चाहते हैं। अपने हुनर को भूल जाते हैं। उसी प्राणी को अपना जुनून, अपनी ज़िद बना लेते हैं, और फिर भटक जाते हैं। कोई ऐसा कदम उठा लेते हैं। जो पूरे समाज को, यहां तक कि इंसानियत को भी लज्जित कर देता है। उस प्रेरणादायक मनुष्य का उपहास तो बनाते ही हैं, उसे तकलीफ़ और मुश्किल में तो डालते ही हैं। अपितु स्वयं का भी उपहास बनवाते हैं, अतः स्वयं की यात्रा को बाधित कर देते हैं।

मैं यह नहीं कह रही हूं, कि प्रेरित मत हो, किसी से प्रेरणा मत लो। मैं तो केवल इतना कह रही हूं, कि जिओ और जीने दो। उस इंसान को क्यों मुश्किल में डालते हो? जो तुम्हें और तुम्हारे जैसे ना जाने कितने लोगों को प्रेरणा दे रहा है, उनकी ज़िंदगी बदल रहा है। Give them break, give them space, उन्हें श्वास तो आने दो। क्यों उनके निजी जीवन में घुसपैठ करते हो? यदि तुम्हारे जीवन में कोई घुसे, तो कैसा महसूस करोगे। या तो लोग वैसा बनने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। या फिर उस व्यक्ति को ‌‌propose कर देते हैं। उससे विवाह करने के पीछे पड़ जाते हैं। उसका पीछा करके, कॉल करके उसकी नाक में दम कर देते हैं।

तब वह inspiring person बेचारा लगता है। पता नहीं कितना संघर्ष करके वह सफलता पाता है। लोगों के हृदय में जगह बनाता है। और बाकी संघर्ष ऐसे लोग उनसे करवा देते हैं। यदि आपको ऐसा ही करना है तो मत हो किसी से प्रेरित। क्योंकि ऐसा करने पर वह व्यक्ति भी डरने लगता होगा जो दूसरों को प्रेरित करता है। और जो लोग किसी के लिए प्रेरणा बन सकते हैं, वो अलग पीछे हट जाते होंगे।

एक पल रुकिए और सोचिए,

स्वयं को खोजिए, क्या पता,

आप भी किसी के प्रेरणा स्त्रोत बन जाएं!

~सोचिएगा अवश्य।

आईना

जब भी आपको यह लगे कि आपको सहायता की बहुत आवश्यकता है और आपको किसके पास जाना चाहिए। तब आपको एक बार आईने के समक्ष ज़रूर खड़ा होना चाहिए। तब आप पाएंगें इस संसार के बेहतरीन शक्स से! जी हां, यही वो शख्स है, यही वो व्यक्ति है, जो आपकी सभी समस्याओं का समाधान जानता है। जो आपकी सभी पीड़ाओं का और आपके समस्त प्रकार के दर्द का निवारण एवम उसकी दवा जानता है। बस अब क्या ? हमने आपको इस पूरे ब्रह्मांड के सबसे बेहतरीन मानव से मुलाकात करवा दी है। अब आपको इन्हीं से आशा रखनी है और इन्हीं से सहायता भी लेनी है। यही आपके जीवन के एकमात्र लक्ष्य के ज्ञाता हैं और यही आपके भविष्य के असली निर्माता हैं। आपकी कथा के निर्माता निर्देशक भी यही हैं। आपके जीवन के सच्चे गुरु और आपके प्रेरक हीरो भी यही हैं। एक बार इनसे भेंट तो कीजिए। अपने हृदय के सभी राज़ इनसे कहिए। ये आपको कभी ना तो नाराज़ करेंगे और ना ही नजरंदाज करेंगे।

आप थोड़ा याद कीजिए जब भी आप मुसीबत में पड़े होंगे, इन्होने ही आपको उसका हल भी बताया होगा और आपको हर समस्या का समाधान भी। तो फिर देर किस बात की एक बार दिल खोलकर बातें कीजिए उस शख्स से जो आपको आपके आईने में नज़र आ रहा है।

~जाइए, जाइए रुक क्यों गए !?!

शत्रु बनाम सबसे घनिष्ठ मित्र

जैसा कि इस आलेख का नाम है | आपको पढ़कर सर्वप्रथम आश्चर्य अवश्य हुआ होगा |
मन में प्रश्न अवश्य उठा होगा कि हमारा शत्रु हमारा सबसे घनिष्ठ मित्र किस प्रकार हो सकता है भला ? तो आइए जानने का प्रयत्न करते हैं कि एसा किस प्रकार हो सकता है ?

आप एक कार्य कीजिये, एक कॉपी और पेन अपने साथ लेकर बेठिए एवं उन सभी व्यक्तियों के नाम लिखिए; जिन्हें आप अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं | अब इन समस्त नामों के साथ उस शत्रुओं से आपकी क्या, क्यों एवं किस प्रकार शत्रुता हुई उन सभी कृत्यों के विषय में जितने विस्तार एवं स्पष्टता से लिख सकते हैं; लिख लीजिए | आपको जानकार आश्चर्य होगा जब आप गहराई से सभी बिन्दुओं का विश्लेषण करेंगें | आप स्पष्टता से देख पाएँगे कि उन सभी व्यक्तियों के कारण, जिन्हें आप सबसे बड़ा शत्रु समझते थे; आप के भीतर एक अद्भुत एवं अतुलनीय बदलाव; जो आपको आपकी वास्तविक शक्ति, सामर्थ एवं आपके हुनर से परिचित करवाएगा | जो कहीं भीतर……. जी हाँ, आप ही के भीतर दबा कुचला-सा पड़ा था | वह, आपके समक्ष प्रकार हुआ एवं उसी के कारण आपका उद्धार हुआ; और वही शत्रु जिसे आप दिनभर कोसते रहते हैं | आपके लिए आपके सबसे घनिष्ठ मित्र साबित हुआ |

यह सत्य है, जो कार्य हमारे लिए सबसे घनिष्ठ मित्र नहीं कर पाते | वही कार्य हमारे सबसे घनिष्ठ शत्रु कर जाते हैं | वह चुन-चुन कर हमें चुनौतियाँ देते हैं एवं वही चुनौतियाँ हमें हीरे की भांति चमकने का सबसे सुनहरा अवसर प्रदान करती हैं | हमारे भीतर की विलक्षण क्षमताओं एवं अवसरों से हमें अवगत करवाती हैं |

अर्थात, जितना अधिक घनिष्ठ शत्रु; उतनी ही अधिक घनिष्ठ मित्रता ! उम्मीद, करती हूँ अब आपके समक्ष मेरी बात स्पष्ट हुई होगी; तो फिर देर किस बात की ? आये, अपने शत्रुओं को एवं उनकी घनिष्ठ मित्रता को स्पष्ट करते हुए उनका आभार व्यक्त कीजिए |

~ जल्दी कीजिए, विलम्ब किस बात का ?!?

चुनाव

‘विज्ञान’ में काफ़ी ज्ञान की बातें देखने को मिलती है। आख़िर उसका नाम ‘वि+ज्ञान’ है। ज्ञान से ही विज्ञान का उदय हुआ है। अर्थात् इसे में इस प्रकार समझती हूं। जैसे:जेड अंग्रेज़ी में ‘वि’ का अर्थ ‘हम’ होता है और ‘ज्ञान’ तो ज्ञान है ही। तो यह हो गया ‘हमारा ज्ञान’ । यानि जो, हम से संबंधित है वह ज्ञान हुआ ‘विज्ञान’।

विज्ञान में एक विषय होता है ‘पोषण के प्रकार’ उसमें हमें देखने को मिलता है कि जीव किस प्रकार पोषण प्राप्त करके वृद्धि करता है। आप हम उसी के विषय में बात करेंगे।
एक होता है:- परजीवी, अर्थात् वह जीव जो अन्य जीवित जीवों से पोषण प्राप्त करते है। दूसरा होता है:- मृतजीवी जो अन्य मृत जीवों से अपना पोषण प्राप्त करते हैं।

तीसरे होते हैं ‘सहजीवी’ अर्थात् वह जीव जो साथ -साथ रहते हैं एवम एक दूसरे से पोषण प्राप्त करते हैं।

हमारा जीवन भी इसी प्रकार के व्यक्तियों से घिरा हुआ होता है। कुछ व्यक्ति हमसे पोषण यानि फ़ायदा लेते हैं। परंतु, बदले में हमें कुछ नहीं देते, तो कुछ हमारे सहयोगी होते है यानि हम उन्हें और वह हमें सहयोग करते हैं।

यह हम पर निर्भर करता है कि हम सामने वाले व्यक्ति से किस प्रकार संबंधित है। परजीवी की तरह या सहजीवी की तरह।

अतः यह भी हम पर ही निर्भर करता है कि हम हमारे जीवन में किस प्रकार के मनुष्यों का स्थान देते हैं एवम उनका चुनाव करते हैं। उसी प्रकार से हमारी वृद्धि भी होती है, हम भी पोषित होते हैं।

~चुनाव पूर्णतया हमारा ही होता है।

सपोर्ट सिस्टम

जि़दगी बिना किसी सपोर्ट सिस्टम के नहीं चल सकती। फिर चाहे वह सपोर्ट सिस्टम हमें कहीं से भी प्राप्त हो रहा हो। यह हमारे लिए ज़्यादा मायने नहीं होना।

परंतु, हमें यह अवश्य ज्ञात होना चाहिए कि वह सपोर्ट सिस्टम हमारे लिए किस प्रकार से कार्य कर रहा है। उदाहरणतः, जब एक बेल को आगे बढ़ाना होता है। वृद्धि करना होता है। वह एक वृक्ष का सहारा लेती है और जब एक वृक्ष को आगे बढ़ाना होता है, वृद्धि करना होता है। वह अपनी जड़ों का सहारा लेता है।

यानि यदि बेल को वृक्ष का सहारा ना मिले तो वह वृद्धि नहीं कर पाएगी। आगे नहीं बढ़ पाएगी। परंतु, एक वृक्ष उसे कोई मिले या ना मिले वह हमेशा वृद्धि करेगा, आगे बढ़ेगा। अर्थात्, यदि मनुष्य का जीवन बेल की भांति होगा तो वह किसी न किसी पर अवश्य रहेगा। परंतु, यदि मनुष्य का जीवन वृक्ष की भांति होगा तो वह बिना किसी अन्य जीव के सहारे के वृद्धि करेगा, आगे बढ़ेगा। उसे अपनी मूल (जड़) पर विश्वास होगा। अतः उसका सपोर्ट सिस्टम मज़बूत एवम स्थाई होगा।

हमें बेल की भांति वृद्धि करना है या वृक्ष की भांति यह चुनाव पूर्णतया हमारा अपना होता है।

~सोचिएगा! आप स्वयं समझ जाएंगे।

स्वीकृति

हम सभी सुधार चाहते हैं !
सुधार अपने जीवन में !
सुधार अपने आस-पास के व्यक्तियों में !
सुधार अपने समाज में !
परन्तु, हम में से कितने ही व्यकी इसे होंगे ? जो स्वयं में सुधार करना चाहते हैं !

क्योंकि यही कार्य हमें अधिक मुश्किल प्रतीत होता है | परन्तु, सत्य इसके ठीक विपरीत है ‘स्वयं’ में सुधार सबसे अधिक सरल कार्य है | अब प्रश्न यह उठता है कि यह कार्य यदि सच में इतना सरल है तो हमें कठिन क्यों लगता है ?

उत्तर भी जान लेते हैं | अतः उत्तर स्पष्ट है – क्योंकि हम हमारी गलतियों को, हमारी कमियों को हमारे भीतर के अँधेरे पक्ष को “स्वीकारना” नहीं चाहते | और इसी कारणवश यह कार्य अत्यंत सरल होते हुए भी हमें कठिन प्रतीत होता है |

हम सभी अपने भीतर की रोशनी की ओर अत्यधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं | परन्तु, यह भूल जाते हैं कि जहाँ पहले से ही प्रकाश है वहां और प्रकाश डालने से क्या लाभ ?
प्रकाश एवं ऊर्जा तो हमें हमारे भीतर के अन्धकार कको देनी चाहिए | ताकि हमारे भीतर का अन्धकार समाप्त हो एवं हर एक कोना दिए की भांति जगमगाए |

परन्तु, इस कार्य को करने हेतु हमें उस अन्धकार को स्वीकारना होगा | हर एक कमी, गलती एवं दुष्कर्मों को कोने-कोने से ढूंढ-ढूंढ कर उस पर अपना ध्यान, समय एवं ऊर्जा खर्च करनी होगी | उसे चमकाना होगा, तभी सुधार सम्भव हो पाएगा; हम में भी एवं हमारे आस-पास के वातावरण एवं समाज में भी |

~ तो आइये एक दिया जलाएं, हमारे भीतर के अन्धकार को मिटने हेतु ||